Friday, April 19, 2024
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Tuesday, April 16, 2024
शिक्षा कैसी हो
शिक्षा मानव को पशु से इंसान बनाती है,उसमें विकास की परिस्थिति को पैदा करती है लेकिन इस तथ्य को समझना वस्तुत बहुत गहन समझ को रेखांकित करता है।शिक्षा को आत्मसात करके इसकी समाज के लिए उपयोगिता स्थापित करना अपने आप में परोपकार के साथ जुड़ा सच है।चुनिंदा तीन प्रतिशत पढ़े लिखे लोगों के ज़िम्मे शेष सतानवें प्रतिशत लोगों का जीवन हो तो ऐसे में तीन प्रतिशत लोगों की जवाबदेही बहुत अधिक बढ़ जाती है।शिक्षा का मूल यह है कि वह व्यक्ति को स्वयं के लिये कम और दूसरों के लिए अधिक जीने के लिए तैयार करती है।आज से पचास साल पहले तक के माहौल में यही सच था।आज जहां शिक्षा का मूल्यांकन स्वयं के उत्थान और अपने तक ही सीमित है वहीं कालांतर में इसका तात्पर्य समाज के सर्वांगीण विकास से था।असल में नालंदा और तक्षशिला में जो तत्कालीन शैक्षिक परिवेश था वो वास्तव में अनुकरणीय था क्योंकि वहाँ सही मायनों में नागरिक निर्माण का कार्य किया जाता था।१९७० के दशक में चाहे शिक्षा का प्रसार बहुत अधिक न था लेकिन शिक्षा की ज़रूरत को शिद्दत से महसूस कर के असाक्षर लोग भी इसके वांगमय को समझते थे।
बीकानेर ज़िले में उस काल में संभवतः आधा दर्जन से अधिक माध्यमिक और इतने ही उच्च प्राथमिक विद्यालय थे जिनमें तीस हज़ार वर्ग किलोमीटर में पसरे इस ज़िले के विद्यार्थी और आसपास के ज़िलों के विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे।जिस स्कूल के लिए ये भूमिका बनाई गई है वो उच्च प्राथमिक विद्यालय शेखसर उस समय में शिक्षा का अभूतपूर्व केंद्र बना हुआ था।संसाधनों की पर्याप्त विपन्नता के बावजूद इस गाँव में शिक्षा के प्रति अनूठा अनुराग था यही कारण था कि इस गाँव में मिडिल स्कूल बनाया गया।सही कहें तो तत्कालीन समय में स्कूलों की व्यवस्था ग्रामीणों की रुचि और उनके सहयोग के दम पर निर्भर करती थी।हालाँकि सरकारी नौकरी करने के क्रेज़ को लेकर उस समय स्कूलों में पढ़ाई और पाठ्यक्रम निर्मित नहीं होते थे,स्कूलों में आदर्श इंसान निर्माण के पाठ्यक्रम के साथ साथ बालकों के सर्वांगीण विकास की बानगी तय होती थी।शेखसर हालाँकि ज़िला मुख्यालय से बहुत दूर और संसाधन विहीन गाँव था लेकिन यहाँ के लोगों की शिक्षा के प्रति ललक और रुचि देख कर यह कहा जा सकता है कि यहाँ के लोग सहाय मानव निर्माण के प्रति बेहद सजग है।ऐसा एनी गाँवों में नहीं देखा सुना गया,इसका क्या कारण रहा हो सकता है इसका विश्लेषण करें तो यह सामने आता है कि यह गाँव चूँकि राजाओं महाराजाओं के संपर्क में था और यहाँ के ज़मींदार तत्कालीन राजाओं के साथ मिलते जुलते रहते थे इस कारण इनका ज्ञान वर्धन होता रहता था।
शेखसर के मिडल स्कूल में शेखसर गाँव के विद्यार्थी तो आवश्यक रूप से अध्ययन करते ही थे जबकि ज़िले के अन्य इलाक़ों से आने वाले छात्र यहाँ मनोयोग से पढ़ते थे।इस विद्यालय ने ज़िलों की सीमाओं को लांघ कर जो माहौल क़ायम किया वो किसी आश्चर्य से कम नहीं हो सकता।श्री गंगानगर,चूरु,जोधपुर,जैसलमेर आदि ज़िलों के निकटवर्ती गाँवों से छात्र यहाँ इसलिए अध्ययन करने के लिए आते थे कि यहाँ असल में शिक्षा का वास्तविक परिवेश क़ायम था।स्कूलों में कक्षा संचालन,प्रार्थना सभा,सह पाठ्येतर गतिविधियों,सांस्कृतिक आयोजन,सामाजिक सरोकार,अध्यापक अभिभावक परिषदें सहित वो सब कुछ यहाँ उपलब्ध था जो असल में शिक्षण संस्थानों की प्राथमिक अवश्यकता होती है।
इस विद्यालय में शिक्षकों के अभाव की वजह यह थी कि इस गाँव तक पहुँचने के लिये किसी भी प्रकार का कोई साधन उपलब्ध नहीं था इसलिए लोग यहाँ आने में बेहद हिचकिचाते थे।इस विद्यालय में व्यवस्थित माहौल के कारण विद्यार्थियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण शैक्षिक माहौल निर्मित नहीं हो पा रहा था।उस समय भी इस स्कूल में अध्यापाक अभिभावक समिति बहुत ज़िम्मेदारी के साथ कार्यरत थी।गाँव में चाहे कितनी भी पार्टी पॉलिटिक्स रही होगी लेकिन स्कूल के मामले में समूचा गाँव सदैव एक जाजम पर होता था।
Tuesday, April 9, 2024
शहर छोड़ कर गांव में पदस्थापन
वर्तमान का जो मौजूदा परिवेश हमें देखने को मिलता है वो वस्तुत: बहुत सी गहराइयाँ लिए होता है,वर्तमान की नींव में अतीत दफन होता है वो अतीत जो कभी वर्तमान होता था,उसी तत्कालीन वर्तमान की मज़बूत नींव पर जो वर्तमान इमारत खड़ी है उसका इतिहास तैयार किया जाना चाहिए।कल्पना कीजिए जिस वर्तमान में हम है,उसका अतीत जैसा भी था उसी के दम से तो वर्तमान है?अतीत में जिन लोगों ने अपने आपको उत्सर्ग किया,जिन लोगों ने अपने आपको समर्पित किया उनको विस्मृत करना इतिहास कभी गवारा नहीं करता।मान लीजिए किसी इमारत की नींव को सहसा निकल लिया जाये तो क्या वो इमारत खड़ी रह सकेगी? कहा जाता है कि इंजीनियर की गलती भवन में,डॉक्टर की गलती श्मशान में दफ़्न हो जाती है लेकिन शिक्षक की गलती से सभ्यताएँ दफन हो जया करती हैं।
1958 में बीकानेर की पाबू पाठशाला में पदस्थापित युवा अध्यापक भंवर सिंह शेखावत को शहर पसंद नहीं आया और उन्होंने गांव में पोस्टिंग मांगी!गांव में जहां अध्यापकों। का बहुत अभाव था वहां तुरंत उनको बीकानेर से तीस किलोमीटर दूर शेरेरा गांव में लगा दिया गया शैरेरा में स्कूल एक झोंपड़े में,पास के ही एक अन्य झोंपड़े में अध्यापक आवास।शहर की सभी सुख सुविधाएं छोड़ कर सुदूर गांवों को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले भंवर सिंह जी ने तो हैं में स्कूल की जाजम जमा दी लेकिन परिवार में दो बच्चों को चिंचड़ चिपक कर बीमार बना गए।अमीर घराने की उनकी अर्धांगिनी को बाकी सब तो बर्दाश्त था लेकिन छोटे बच्चों की दुर्गति वो नहीं सहन कर सकी।उन्होंने ऐलान कर दिया की वो यहां नहीं रहेगी।छोटे छह माह के बालक की चिंचड और ऐसे विषाणुओं ने काट काट कर सूजा दिया।घबराई मां बच्चे को गोद में उठा कर पच्चीस किलोमीटर दूर रेतीले धोरों में से वैद्य को दिखाने गई तब कहीं जा कर बच्चे को बचा सकी। मां ने तय कर लिया कि अपने मासूम बच्चों की जान की कीमत पर वो ऐसी नौकरी नहीं करने देगी।वो बीकानेर आ गई और किराए के मकान में रहने लगी।भंवर सिंह जी को तो गांवों से प्रेम था ,उन्होंने कपूरीसर में पोस्टिंग करा ली।बीकानेर से करीब सौ किलोमीटर दूर इस गांव में रहे, बाद में जब सेकंड ग्रेड में प्रोमोशन हो गया तो १९७० में इसके पडौस के शेखसर गांव में बतौर हेड मास्टर पोस्टिंग हुई। शेखसर बड़ा गांव था,चिकित्सा सुविधा थी,आयुर्वेदिक अस्पताल था,यहां ठीक बैठा,और शेखसर में अपने आपको स्थापित करने की ठान ली। शेखसर के लोगों में शिक्षा के प्रति ललक और जागृति देख कर भंवर सिंह जी का उत्साह बढ़ा और वे जुट गए।स्कूल मिडल हो गई लेकिन कमरे नहीं थे, चंदा किया गांव गांव शहर शहर घूमे,चंदा इकट्ठा कर के स्कूल के कमरे बनाए,अध्यापकों के रहने के लिए आवास बनाए और एक शानदार विद्यालय सिस्टम को आकार दिया।परिवार के साथ शेखसर में रहते हुए उन्होंने शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि दो साल में ही शेखसर के स्कूल की ख्याति फैलने लगी। उस जमाने में मिडल स्कूल शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करते थे,जिले में ही चंद दो चार मिडल स्कूल हुआ करते थे।इस स्कूल में आसपास के गांवों से पढ़ने के लिए छात्र प्रवेश लेने लगे।देखते ही देखते यह स्कूल पश्चिमी राजस्थान का बहुत बड़ा शिक्षा केंद्र बन गया।बीकानेर,चुरू,श्री गंगानगर, हनुमानगढ़,सीकर,जैसलमेर,झुंझुनूं सहित अनेक जिलों से यहां छात्र आने लगे,भंवर सिंह जी ने पुराने पंचायत भवन को छात्रावास का रूप दिला दिया।अब स्कूल चौबीसों घंटे चलने वाला केंद्र बन गया।यहां स्कूल दिन में भी और रात में भी चलता था क्योंकि अध्यापकों और छात्रों के पास दूसरा कोई काम ही नहीं था।भंवर सिंह जी ने इधर उधर से ढूंढ कर अपने से संबंधित ग्रामीण इलाकों के अध्यापकों की खोज कर उनकी पोस्टिंग यहां करवा ली वहीं जब शिक्षा विभाग के अफसरों ने देखा कि छात्र संख्या निरंतर बढ़ रही है,राजस्थान के अनेक स्थानों से छात्र यहां पढ़ने आ रहे हैं तो उन्होंने यहां अध्यापकों की नियुक्तियां भी कर डाली।आठवीं तक के स्कूल में करीब आठ दस अध्यापक हो गए और सब के सब गांव में स्थाई रूप से रहने वाले,क्योंकि गांव से बाहर जाने के लिए कोई साधन था ही नही।कोई कहीं बाहर जाए तो भी कहां जाए इसलिए दिन रात बच्चों को पढ़ाने और खेल कूद की गतिविधियों के अलावा कोई काम नहीं था।विद्यालय शिक्षा का केंद्र तो होता है लेकिन उचित और आवश्यक संसाधनों के अभाव में शिक्षा अपने मूल स्वरूप में नहीं रह सकती।शिक्षा देने और लेने के लिए माहौल,भवन,संसाधन,बैठने के प्रबंध,कालांश प्रबंध,अध्यापकों की मौजूदगी आदि अनेक कारक आवश्यक होते हैं।ग्रामीण माहौल में पढ़े लिखे पले बढ़े हेड मास्टर जी ने गाँव को स्कूल में शासमिल करने की ठानी।
Friday, April 5, 2024
अमरबेल क्या है?
Sunday, May 22, 2016
महाकुम्भ इलाहाबाद से सिंहस्थ उज्जैन कुम्भ तक
कुम्भ से कुम्भ तक की इस महायात्रा में अनेक मुकाम आये और अंततः मंजिल मिली|
ब्लॉग लिखे एक अरसा हो गया अब इसे वापस शुरू किया जा रहा है,अनवरत जारी रहेगा यह सिलसिला| यह ब्लॉग लिखने का कारण भी अजीब है।उज्जैन के महाकुंभ में समर्थ सद्गुरू श्रीधर जी ब्रह्मचारीजी महाराज के सानिध्य में कुछ दिन रहना और पूर्ण आध्यात्मिक वांगमय को आत्मसात् करने के अतिरिक्त यहाँ परिजनों को भी आध्यात्मिक अतिरेक का एहसास करवाना एक कारण रहा।यह अनुभूत सत्य है कि आप इस जहान में आध्यात्मिक स्फुर्णा और ऊर्जा के बिना कामयाब नहीं हो सकते।महाकाल की नगरती उज्जैन में समर्थ सद्गुरू के आशीर्वाद तले रह कर जीवन को सुधारने का अभूतपूर्व अवसर किसी वरदान से कम नहीं।उज्जैन में गुरुदेव का आदेश हुआ कि क्षिप्रा का स्नान तो हुआ,अब नर्मदा मैया में। स्नान का सुख और पुण्य प्राप्त करो और नेमावर आश्रम में जा कर वहाँ की सात्विकता का आनंद उठाओ।हम सबब लोग अपन्नी दोनों गाड़ियों से गुरुदेव के शिष्य शुक्ला जी के मार्गदर्शन में नेमावर पहुँच गये,गुरुगृह में आनंद लिया,नर्मदा स्नान किया।
Saturday, February 13, 2010
अमरबेल १३ फरवरी २०१०
बहरहाल, योग्य और एक सर्व गुण संपन्न नागरिक कैसे बनाया जाये? इन कुछ बातों पर यदि हम गोर करें तो महसूस करेंगे कि सतही स्तर पर शिक्षण का स्तर क्या हो?विद्यार्थी की परिभाषा क्या हो? अभिभावक को किस प्रकार अपने बच्चों की देखभाल करनी चाहिए?अध्यापक अभिभावक परिषद् कैसे काम करती है?अध्यापक के पढ़ाने के तरीके क्या हों?अध्यापक डायरी का क्या महत्व है?पाठ्यक्रम किस प्रकार से समझा जाये?इसे स्थानीय परिवेश के साथ कैसे जोड़ा जाये?प्रार्थना सभा का जीवन में क्या महत्व है?अनुशासन कैसे कायम हो?शिष्य और गुरु के सम्बन्ध घनिष्ठ कैसे बनें?विद्यार्थी कुशाग्र कैसे बनें? हमें ये देखना होगा की ऐसे स्कूलों को कैसे सालों साल चलाया गया?वो लोग हमें ढूंढ कर लाने पड़ेंगे जो इस व्यवस्था के संचालक थे अन्यथा बहुत देर हो जाएगी